शीतला अष्टमी – लाला रामस्वरूप रामनारायण पंचांग के अनुसार इस बार शीतला अष्टमी 17/03/2020 को मनाई जा रही है। मान्यता के अनुसार होली से आठवें दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला माता की अष्टमी के नाम से जाना जाता है इसे बसोरा पर्व भी कहा जाता है। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस अष्टमी का बहुत महत्व है, शीतला माता की पूजा
विधि विधान से करने से उनके व्रत का पालन करने से जीवन में सुख, शांति, समृद्धि,
खुशहाली और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
एक मान्यता के अनुसार इस अष्टमी पर शीतला माता को वासी
भोजन का भोग लगाया जाता है, और फिर उसी प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता
है। इस दिन किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता है।
इस तिथि से ऋतु परिवर्तन शुरू हो जाता है, और इस तिथि
के बाद से वर्षा ऋतु तक वासी भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
शीतला माता का रूप वर्णन – शीतला माता इस दिन अपनी
प्रिय सवारी गर्दभ पर विराजमान रहती हैं, उनके एक हाथ में कलश और एक हाथ में झाड़ू
(मार्जन), सूप, और नीम का झोरा धारण किए होती
है।
शीतला अष्टमी पूजा विधि – इस व्रत को करने के लिए सप्तमी तिथि को ही घर
की अच्छी तरह से साफ सफाई कर ली जाती है, और शाम को माता के भोग के लिए तरह तरह के
पकवान तैयार कर लिए जाते हैं क्योंकि अष्टमीं को शीतला माता को वासी भोजन का भोग
चढ़ाया जाता है।
अष्टमीं की सुबह व्रती और उसका पूरा परिवार
ब्रह्ममूहूर्त में जाग कर नित्य क्रिया से निव्रत्त होकर, घर की सफाई कर स्नान कर
लेते हैं।
शास्त्र अनुसार शीतला माता की पूजा करें उन्हें वासी
भोजन का भोग लगाएं ।
पूजा की थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, फूल, फल, मिठाई
और सप्तमी को बना वासी भोजन का प्रसाद अर्पित करें। पूजा की थाली में शीतल जल का
कलश अवश्य रखें ।
माता को मेंहदी, मोली और वस्त्र अवश्य अर्पित करें । घर
में पूजा के बाद होलिका दहन के स्थान पर जाकर पूजा करें और भोग को गाय को खिलाएं
।
इस व्रत को विधि विधान पूर्वक ह्रदय में माता के
प्रति सत्यनिष्ठा रखने से माता सारी वाधाओं को दूर करती हैं, रोग दोष का निवारण
करती हैं। कई भयंकर रोगो जैसे चेचक, खसरा,
छोटी माता और बड़ी माता आदि रोगो से रक्षा करती हैं ।
श्री शीतला माता की आरती
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता॥
ॐ जय शीतला माता...
रतन सिंहासन शोभित,श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर डोलावें,
जगमग छवि छाता॥
ॐ जय शीतला माता...
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता।
वेद पुराण वरणतपार नहीं पाता॥
ॐ जय शीतला माता...
इन्द्र मृदङ्ग बजावतचन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजावैनारद मुनि गाता॥
ॐ जय शीतला माता...
घण्टा शङ्ख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरती लखि लखि हर्षाता॥
ॐ जय शीतला माता...
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देती मातु पिता भ्राता॥
ॐ जय शीतला माता...
जो जन ध्यान लगावे प्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता॥
ॐ जय शीतला माता...
रोगों से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता॥
ॐ जय शीतला माता...
बांझ पुत्र को पावे दारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछताता॥
ॐ जय शीतला माता...
शीतल करती जन की तू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशन तू सब की माता॥
ॐ जय शीतला माता...
दास नारायण कर जोरी माता।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ माता॥
ॐ जय शीतला माता.